ग़ज़ल
इसलिए दर्द ज़ियादा है, ख़ुमारी कम है
इसलिए दर्द ज़ियादा है, ख़ुमारी कम है
ज़िन्दगी बीती ज़ियादा है ,गुज़ारी कम है
माँग कर लाये थे साँसों का, जो सरमाया हम
सब हुआ ख़र्च कि अब तो, ये उधारी कम है
क्या समझ रक्खा है तुमने ओ, जम्हूरे ख़ुद को
मत समझना किसी सूरत ये ,मदारी कम है
जब से क्या थोड़ा नवाज़ा है ख़ुदा ने उसको
तब से भगवान ज़ियादा है ,पुजारी कम है
ये सियासत है यहाँ सब की, दुकाँदारी है
सोम संगीत है सीधा न ,बुख़ारी कम है