शनिवार, 11 जुलाई 2015

मुंशिफ से हम गुनहगार होते चले गये
बच्चे मेरे समझदार होते चले गए।

बचपन में सिर्फ बनती थी दिल और ज़हन में
आपस में फिर पलटवार होते चले गए।

जब से सलीका आया ग़ज़ल कहने का हमें
 हम और भी असरदार होते चले गए।

चाबुक लगायी सच ने फ़क़त एक झूठ पर
फिर झूठ सब ख़बरदार होते चले गए।

पहले ज़मीन ए दिल  पर किराये से घर लिया
हौले से फिर ज़मींदार होते चले   गए

निर्मल उन्होंने हल्का जो किरदार कर लिया
 बस तबसे वो वज़नदार होते  चले गए।





रविवार, 21 जून 2015

ग़ज़ल

प्यार  का  बेज़ुबाँ पर असर देखिये ,
शाख पर खूबसूरत ये घर देखिये। 

इस के कहने पे हमने लगाया इधर,
अब ये दिल  कह रहा है उधर देखिये। 

खुद से मिलने में तुमको लगेगी उमर ,
आप करके कभी यह सफर देखिये। 

अपनी मिटटी से होकर जुदा आजकल,
फिर रहा है बशर दर बदर देखिये। 

उम्र छोटी सही कर्म लेकिन बड़े ,
राह  सच्ची भले मुख़्तसर देखिये। 

इससे बेहतर  गवाही ये माँ कैसे दे ,
हाथ बच्चे के सर  आँख तर देखिये। 

राम नानक मोहम्मद या जीसस कहो ,
राह सबकी रही पुरखतर देखिये। 

गम में रोयेगी दुन्या तेरे साथ  में ,
टाल  देगी खुशी मांग कर देखिये। 

तेज़ भागा फक़त एक  मंज़िल  मिली ,
इस जुनूँ का अभागा सफर देखिये। 

दूसरे की खबर तीसरे  से मिली ,
वो है "निर्मल " बड़ा बेखबर देखिये। 








शुक्रवार, 20 मार्च 2015

किरदार बोहत छोटे मगर रुतबे बड़े हैं ,
हैं लोग मेरे घर में ,समझ से जो परे  हैं। 

दोनों को मिली एक सज़ा वक़्त के हाथों ,
वो जंग  में ,ये हाथ ,हवन  करते जले  हैं। 

टकसाल तुम्हारी ही थी, क्या रोने से हासिल,
खुद आपके निर्देश पे सिक्के ये ढ़ले हैं। 

सब तुमको मिले ,अपने लिए इतना बोहत है ,
माँ  बाप, मेरे आज भी सिरहाने खड़े हैं। 

लेना सभी को आता नहीं आता चुकाना ,
कर्तव्य विमुख भीड़ में हक़दार बड़े हैँ। 

पुस्तक मेरी ,बस्ता मेरा ,सर मेरा बड़ा है ,
बच्चों की तरह आज समझदार अड़े हैं। 

हर दौड़ में आगे मिले क्या दौर है "निर्मल "
अपनी ही निगाहों में  बमुश्किल जो खड़े  हैं। 






सोमवार, 26 जनवरी 2015

उसने शायद आज तक बाज़ी कभी ना  हारी हो,
फिर भी उसको चाहिए वो  वक़्त का आभारी हो.

बस यही करता गुज़ारिश मैं ख़ुदा  से रोज़ ही,
हो ज़रा सी ज़िन्दगी पर वो सदी पर भारी हो। 

धार लफ्जों पर बोहत है है कलम पर नोक भी,
चल सियासत रोक मुझको तेरी  जो तय्यारी  हो। 

छोड़ कर उसको खुशी  चल दे तो खुश होना नहीं,
क्या पता फेहरिश्त में अबकी तुम्हारी बारी हो।

ज़ुल्म उस वहशी  सा तेरा जिसने इज़्ज़त लूटी हो ,
दर्द उस लड़की सा मेरा जिसने इज़्ज़त हारी हो।




रविवार, 25 जनवरी 2015

घर से बाहर निकलो, लोगों से मिलो बाज़ार  में  ,
वो  भी पढ़ना सीखो जो छपता  नहीं अखबार में। 

गाली देकर क्या होगा चौराहे पर या थाने में ,
नेताजी तक पैसा जाता सूबे की सरकार में। 

सौदागर तुम हाट के हो तुम से न बन पायेगी ,
उसके हम सौदाई जो बिकता नहीं बाज़ार  में। 

साफ़ नीयत  से करम कर छोड़ दे फिर सोचना,
नाव साहिल पर लगेगी या फंसेगी धार में।

लोक भी परलोक भी भगवन भी शैतान भी ,
है बुरा अच्छा यहीं  पर कुछ नहीं उस पार में।

लड़के की चाहत का आलम  देखा हमने ऐसे  भी ,
आठ  बेटी एक बेटा भीखू   के परिवार में।

मत पिलाओ दूध पकड़ो सांप फन  से और फिर,
ख़त्म कर दो किस्सा "निर्मल" एक ही तलवार में।