मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

लोगों  के दिलों में वो ही मुक़ाम करते हैं 
शाइरी की शरीयत में जो कलाम करते हैं 

फ़िर ये तो अदब के  कद्रदानों की ही महफ़िल है 
सो अदब नवाज़ों को हम सलाम करते हैं 
ख़ुदा के बन्दों से गुफ़्तगू ,हमने तो ग़ज़ल की ज़ुबाँ  में कर ली 
सुनानी थी उसकी तान सबको, सो अपने अधरों पे मुरली धर ली 

जुदा थे हम तो ज़माने भर से ,कि  तौर उनके न आये हमको 
ख़ुदा ने तेवर दिए थे जैसे ,उसी के दम  पे  ये झोली भर ली 
इस मकीं को उस मकां में अब गवारा कौन है 
लोगों को अपने सिवा दुनिया में प्यारा कौन है 

आपके आने से पहले आप आये थे यहाँ  
जेहन ने पूछा था दिल से ये तुम्हारा कौन है 

द्वार पर फ़िर सुन के आहट मन मचल के बोल उठा 
इक दफ़ा तो थी हवा लेकिन दुबारा कौन है 

जिस तरह से सोच कर वो भेजता हमको यहाँ  
उस तरह से ज़िन्दगी आखिर गुज़ारा कौन है 

सारी दुनिया छोड़ दे चाहे तुम्हे मझधार में 
उस ख़ुदा के रहते मत कहना हमारा कौन है