मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

लोगों  के दिलों में वो ही मुक़ाम करते हैं 
शाइरी की शरीयत में जो कलाम करते हैं 

फ़िर ये तो अदब के  कद्रदानों की ही महफ़िल है 
सो अदब नवाज़ों को हम सलाम करते हैं 
ख़ुदा के बन्दों से गुफ़्तगू ,हमने तो ग़ज़ल की ज़ुबाँ  में कर ली 
सुनानी थी उसकी तान सबको, सो अपने अधरों पे मुरली धर ली 

जुदा थे हम तो ज़माने भर से ,कि  तौर उनके न आये हमको 
ख़ुदा ने तेवर दिए थे जैसे ,उसी के दम  पे  ये झोली भर ली 
इस मकीं को उस मकां में अब गवारा कौन है 
लोगों को अपने सिवा दुनिया में प्यारा कौन है 

आपके आने से पहले आप आये थे यहाँ  
जेहन ने पूछा था दिल से ये तुम्हारा कौन है 

द्वार पर फ़िर सुन के आहट मन मचल के बोल उठा 
इक दफ़ा तो थी हवा लेकिन दुबारा कौन है 

जिस तरह से सोच कर वो भेजता हमको यहाँ  
उस तरह से ज़िन्दगी आखिर गुज़ारा कौन है 

सारी दुनिया छोड़ दे चाहे तुम्हे मझधार में 
उस ख़ुदा के रहते मत कहना हमारा कौन है 

रविवार, 10 नवंबर 2019

फ़िर ये बादल आँखों पर छा ही गये 
आप हमको याद फ़िर आ ही गये 

शाख तो फ़िर से हरी हो जाती है 
पत्ते जो टूटे तो मुरझा ही गए 

कनखियों से वो हमें देखा किये 
हमने देखा तो वो शरमा ही गये 

यक ब यक हम से लिपट बैठे थे वो 
डर से ही आये मगर आ ही गए 

बेखुदी में दूर थे खुद से बहुत 
होश में फ़िर ख़ुद से  टकरा ही गये 


सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

नफ़रत   का  दरिया बहने दे तू  सुख़नवरी कर
सच्ची कलम से  संस्कारों  की फसल खड़ी कर

दिल की ज़मीन पर एहसासों के गंगा जल से 
लोगों के छोटे छोटे दुख लिख कलम बड़ी कर 

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

तुम्हारे इल्म ओ  फ़न को प्यार हासिल है बहुत रब का
बड़ी आसानी से कह देते हो तुम हाल ए दिल सबका 

ग़लत फ़हमी  में मत रहना बचा लेगा तुम्हे इक दिन 
भँवर  का और साहिल का अजी अब एक है तबक़ा 

अदब का वो मुहाफ़िज़ था अलम्बरदार था सच का 
मियाँ वो नेक शायर मुफ़लिसी  में मर गया कबका 



शुक्रवार, 27 सितंबर 2019

सब सयाने हो गए ,हम तो  दीवाने  रह गए 
हो गयी दुनिया नयी ,बस हम पुराने रह गए 

जी लिए किरदार सारे भागते और हाँफते 
ज़िन्दगी बस गीत तेरे गुनगुनाने रह गए 

मेरी महफ़िल छोड़कर तू गैर की महफ़िल में था 
अब तो बस गैरों के आगे ग़म उठाने रह गए 

गाँव के चौपाल में बिछती थी खाटें रात में 
अब कहाँ वो किस्सा गोई ,वो फ़साने रह गए 

पूछा मैंने तो चुनावी तैयारी पर बोला  वो 
तेल छिड़का है अभी ,बस घर जलाने रह गए 






गुरुवार, 29 अगस्त 2019

 ख़ुश्बू  ने उसकी, हर धड़कन ज़ाफ़रानी की है
  मेहमान ए इश्क़ की, दिल ने मेज़बानी की है 

फ़िर आज हँस  पड़े लब ,ज्यों डबडबाई आँखें 
फ़िर  आज लब  ने आँखों की पासबानी की  है 

ये शौक़ ए शायरी है, छोडो सियासतदां तुम 
तुमने तो सिर्फ नफ़रत से हुक्मरानी की है 

दोस्ती भी तुम यहाँ शिद्दत से नहीं निभाते 
हमने तो दुश्मनी  भी अमा  खानदानी की है 

सोचो की मसअला तुम ख़ुद तो नहीं ,कि अब तो 
ख़ुद बेटे ने भि तुमसे ,फ़िर  बदज़ुबानी की है 


शनिवार, 8 जून 2019

 बेशक सब कमरों में इक खाट पड़ी नहीं थी
 पर ऐसा तो न था  घर में  दरी नहीं थी 
 सारी सुविधाएँ एकमुश्त, धरी नहीं थी 
 हाँ फ़िज़ूलख़र्ची नहीं थी, पर कमी नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ,  कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों आता नहीं दोबारा 

ख़ुशी आसपास थी ,हमसे रूठी नहीं थी 
तब आँखों की नदी हमारी  सूखी नहीं थी 
नीयत और नीति में कोई  दूरी नहीं थी 
दुनिया इंसानियत को तब भूली नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों  आता नहीं दोबारा 

दौलत शोहरत की कोई भी, थाती नहीं थी 
मंदिर में बिन घी की मगर, बाती  नहीं थी 
दिखावे छलावे की भाषा,हमें  भाती नहीं थी 
 बातें  बनानी भी हमको , आती नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों  आता नहीं दोबारा 

 पैसों से अपनी जेब बेशक, पटी  नहीं थी 
 ईमान  गिर जाये  इतनी  जेब फटी नहीं थी 
आँगन से, एहसासों की फुलवारी हटी नहीं थी 
हमारी बुआ बहन  बेटी, हमसे कटी नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों आता नहीं दोबारा 


 हाँ तरक्की की हवा ज़ियादा चली नहीं थी 
 पर भाई की तरक्की भाई को खली नहीं थी 
 लालच की दाल इस समाज में गली नहीं थी
 मुरझाई हुई  कोई भी मन की कली नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों आता नहीं दोबारा 

बेशक पिछड़े थे, और सोच भी खुली नहीं थी 
पर नफरत तो ज़रा भी, हवा  में घुली नहीं थी 
बेतहासा भागने में दुनिया, तुली नहीं थी 
सच पूछो तो वो दुनिया कोई बुरी नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों  आता नहीं दोबारा 










रविवार, 12 मई 2019

मज़हब के इतने तंग कूचे, घेरे में आया नहीं
दरवेश घूमा दुनिया में , कूचे में आया  नहीं 

जिस्मों को पहना रूह ने ,कुछ पल का है ये पैरहन 
गीता ने कितना समझाया तू कहने में आया नहीं 

इतना कमाया फिर भी जब देने की सोचा कम पड़ा 
भरते रहे बस पेट अपना देने  में  आया नहीं 

हिलडुल रही थी लाश बन ,कहती रही मैं ज़िंदा हूँ 
कटती रही  बस ज़िन्दगी यूँ  ,जीने  में आया नहीं 

पाया ये तो वो छूटा,शिद्दत से पकड़ना चाहा पर 
किस्मत में जितना था मिला ,सब खीसे में आया नहीं 



तेरी  खुश्बुओं के घेरे में सब ख्वाब  हैं ढले 
जीवन के इस सफर में तुम्हे लेके हम चले 
सीने में जलता इश्क़ है कोई आग क्या करे 
दुनिया की फिक्र छोड़ दी जलती है तो जले 
ख्वाबों के फूल  खिल  गए   कचनार हो गए 
हम दोनों के  मन मिल  गए इकसार हो गए 
चेहरे को छू  के ये  नज़र  मुस्कुरा  उठी 
लब उसके छू के लब मेरे गुलज़ार हो गए 

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

चहक उठीं हैं कलियाँ देखो वासंती ऋतु आ गयी
मचल उठीं हैं नदियाँ देखो वासंती ऋतु आ गयी 

समग्र धरा के पुष्पों का मन अर्पण को तैयार है 
पीताम्बरी वसन में जैसे  नर्तन को तैयार है 
पलाश मन केसरिया देखो ,वासंती ऋतु आ गयी 

तेरी मुरलिया सुनने को ये बृज  भूमि तैयार है 
सुरामृत पीने को क्षिति की अंजुरी भी तैयार  है 
राधा बोले ओ रसिया देखो वासंती ऋतु आ गयी 

मोहक ऋतु  के सर पर पगड़ी बंधने  को तैयार है 
मदन रति का रथ भी देखो चलने को तैयार है 
प्रदीप्त मन की गलियां देखो वासंती ऋतु आ गयी 

                                           राकेश निर्मल 


गुरुवार, 24 जनवरी 2019

इश्क़ की सीमा तन है , तो तन दुर्योधन हो जायेगा 
इश्क़ की सीमा मन है,तो मन मनमोहन हो जायेगा 
इश्क़ की पाकीज़गी जीवन  में अगर  कायम रही 
बंद आँखों से दिखेगी राधा ,मन लोचन हो जाएगा 

मत बनाओ ख़ुद  को मँहगा ,सस्ता रहने दो 
लोगों  से  मिलने  का  कोई, रस्ता रहने  दो 
तुमको हुक़ूमत करना है ,तख़्त-ए-दिल पर यार 
दिल को दर्द-ए-दुनिया से बाबस्ता  रहने दो