शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

चहक उठीं हैं कलियाँ देखो वासंती ऋतु आ गयी
मचल उठीं हैं नदियाँ देखो वासंती ऋतु आ गयी 

समग्र धरा के पुष्पों का मन अर्पण को तैयार है 
पीताम्बरी वसन में जैसे  नर्तन को तैयार है 
पलाश मन केसरिया देखो ,वासंती ऋतु आ गयी 

तेरी मुरलिया सुनने को ये बृज  भूमि तैयार है 
सुरामृत पीने को क्षिति की अंजुरी भी तैयार  है 
राधा बोले ओ रसिया देखो वासंती ऋतु आ गयी 

मोहक ऋतु  के सर पर पगड़ी बंधने  को तैयार है 
मदन रति का रथ भी देखो चलने को तैयार है 
प्रदीप्त मन की गलियां देखो वासंती ऋतु आ गयी 

                                           राकेश निर्मल