शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

१२१२२  १२१२२  १२१२२  १२१२
पुरान कुरआन दोनों ग्रंथो से तेरी पहचान थोड़ी है
यही वजह है कि  उसका अल्लाह तेरा भगवान् थोड़ी है

उसे तो मिलता है वोट मज़हब के नाम पर ,काम पर नहीं
वगरना वो आपके हमारे ग़मों से अनजान थोड़ी है

लगाया पत्थर से दिल तो पत्थर में भी खुदा की झलक मिली
मियाँ ये पत्थर से दिल लगाने में कोई नुक्सान थोड़ी है

सुनो ये ग़ज़लें मेरी हमेशा करेंगी बेदार आपको
ये हुक्म अल्लाह का है मुझको ये कोई एहसान थोड़ी है

जेहाद के सब मआनी  शैतान ने सिखाएँ  है आपको
चलो उसे मार दो वो काफिर है कोई इंसान थोड़ी है

ये शे'र चलते हैं अपनी मर्ज़ी से राज दरबार से नहीं
ये तो चमन के महकते गुल हैँ ये गुल ए गुलदान थोड़ी हैं

तुम्हें तो लगता  है सोयें हैं सब तुम्हें कोई देखता नहीं
सितम किये जा हज़ार ,अल्लाह भी निगहबान थोड़ी है

कई बरस से टिकी हुई बदन की जर्जर पनाह में
गलत सुना था, ये ज़िन्दगी कुछ पलों की मेहमान थोड़ी है