शनिवार, 26 नवंबर 2011

बाबूजी....Nazm

चट से पड़ें  गाल पर   , झट से फिरें  बाल पर
 बाबूजी वो  आपकी   उँगलियाँ  कमाल   थी।
...
 रोते हुए  हँसे  थे , हँसते   हुए   चले   थे,
 बाबूजी वो आपकी  सूक्तियाँ कमाल थी।

बेफिक्र होके  भागते निडर थे वह  रास्ते,
बाबूजी के बांह की ,  मछलियाँ कमाल थी।

तम जब घूरता था,बस उन्ही को  ढूँढता था,
बाबूजी के व्यक्तित्व की  बिजलियाँ कमाल थी।


बातों में इक  कशिश थी सच की सब तपिश थी , 
बाबूजी  के चरित्र की , गर्मियां कमाल थीं। 

वर्जनाऐं  तोड़ती थी रिश्तों को जोड़ती थी,
 बाबूजी वो आपकी चिट्ठियाँ कमाल  थीं।

वो जब भी डांट लगाते ,मुझे गोद में सुलाते ,
बाबूजी वो आपकी थपकियाँ कमाल थी !

छाई  तो रही सदा, पर बरसी यदा कदा ,
बाबूजी के नेह की , बदलियाँ कमाल थी.

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