गुरुवार, 29 अगस्त 2019

 ख़ुश्बू  ने उसकी, हर धड़कन ज़ाफ़रानी की है
  मेहमान ए इश्क़ की, दिल ने मेज़बानी की है 

फ़िर आज हँस  पड़े लब ,ज्यों डबडबाई आँखें 
फ़िर  आज लब  ने आँखों की पासबानी की  है 

ये शौक़ ए शायरी है, छोडो सियासतदां तुम 
तुमने तो सिर्फ नफ़रत से हुक्मरानी की है 

दोस्ती भी तुम यहाँ शिद्दत से नहीं निभाते 
हमने तो दुश्मनी  भी अमा  खानदानी की है 

सोचो की मसअला तुम ख़ुद तो नहीं ,कि अब तो 
ख़ुद बेटे ने भि तुमसे ,फ़िर  बदज़ुबानी की है