शनिवार, 11 जुलाई 2015

मुंशिफ से हम गुनहगार होते चले गये
बच्चे मेरे समझदार होते चले गए।

बचपन में सिर्फ बनती थी दिल और ज़हन में
आपस में फिर पलटवार होते चले गए।

जब से सलीका आया ग़ज़ल कहने का हमें
 हम और भी असरदार होते चले गए।

चाबुक लगायी सच ने फ़क़त एक झूठ पर
फिर झूठ सब ख़बरदार होते चले गए।

पहले ज़मीन ए दिल  पर किराये से घर लिया
हौले से फिर ज़मींदार होते चले   गए

निर्मल उन्होंने हल्का जो किरदार कर लिया
 बस तबसे वो वज़नदार होते  चले गए।