शनिवार, 14 जुलाई 2012

बस इसलिए पहुंचा फलक तक मै खाक से;Ghazal

बस इसलिए पहुंचा फलक तक मै खाक से,
मिलता हूँ जिसको लगता गले वो तपाक  से।

क्यूँ तय नहीं है कुछ भी यहाँ कायनात में ,
क्या बन गयी है खुदाई मियां इत्तेफ़ाक़ से।

मुर्दा निज़ाम है अब ,बेहरकत आवाम है,
जिंदा है सब  कि आ जा रही सांस नाक से।

भरते हैं पेट अपना वतन नोच नोच के,
निर्मल  सभी को  मतलब है अपनी खुराक से।







हो गया मोहाल फिर क्यूँ सांस भी लेना यहाँ ;Muktak

हो गया मोहाल फिर क्यूँ सांस भी लेना यहाँ ,
जब न कुछ लेना किसी से जब न कुछ देना यहाँ।
इसलिए अपने दुःख पर खुल के हंस ले तू ज़रा ,
क्रंदन कहीं सुन कर तुम्हारा जग हँसे  ना  यहाँ।