ज़ख़्म सारे एक दिन अपने भरेंगे देखना
खिलखिला कर लोग सारे, फिर हँसेंगे देखना
आंसुओं का क्या है हमको सोच कर देखो ज़रा
आपके रुख़सार पर, ढलके मिलेंगे देखना
क्या हुआ जो इस जहाँ में मिल न पाए आपसे
उस जहाँ में आपसे, निश्चित मिलेंगे देखना
सदियों से भारत वतन ही मांगते आये हैं हम
फूल बन कर इस चमन में, फिर खिलेंगे देखना
ख़ाक को तुम भी बदन कहने लगे हो आजकल
हम बदन को ख़ाक कहते ही रहेंगे देखना
हम से हो पाया नहीं तो आपसे होगा नहीं
दुनिया वाले कह रहे थे, फिर कहेंगे देखना
ज़िन्दगी बस में नहीं ,बस दिल लगाने के लिए
घर बसने की की जुगत में, चल बसेंगे देखना
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