शनिवार, 7 जनवरी 2012

शिकवे गिले मिटा के सभी मुस्कुराइए;Ghazal


शिकवे  गिले मिटा के सभी मुस्कुराइए ,
दोनों ने अपनी अपनी कही मुस्कुराइए।

कुछ आंकड़ों का खेल  नहीं जिंदगी कोई,
छोड़ो कभी तो खाता  बही मुस्कुराइए। 

हर  पल ये जिस्म गल  रहा है बर्फ की  तरह,
फिर न मिलेगा आज कभी मुस्कुराइए। 

दुन्या है इक सराय मुसाफिर हैं हम सभी ,
जाना है सबको उसकी गली मुस्कुराइए। 

सारा चमन विशाल गगन खिलखिला रहा,
 लो मुस्कुरा रही है कली  मुस्कुराइए।

हर एक बूँद मोती पसीने की दोस्तों ,
काली कमाई किसको फली मुस्कुराइए। 

कैसा भी वक़्त हो वो गुज़रता ज़रूर है 
सबकी करेंगे राम भली मुस्कुराइए 

सब कुछ नज़र का खेल है  दुनिया में इसलिए ,
कुछ भी गलत न कुछ भी सही मुस्कुराइए। 


 







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