शनिवार, 26 अगस्त 2017

 सिर्फ रोया  कभी हँसा  ही नहीं
 मरने से पहले वो जिया ही नहीं

टाल देता था  जो भी चाहे वो 
मौत का वक़्त तो टला ही नहीं 

तेरी खातिर जियेगा क्या कोई 
तू  किसी के लिए मरा ही नहीं 

अपना घर बस बचा हो, बाक़ी फ़िर 
आजकल ख़ून खौलता ही नहीं 

जैसे सब आये तू भी  आ जाता 
सब गिरे थे ,तू तो उठा ही नहीं 

कितने नादाँ हैं ,जो  ये कहते हैं 
अपने जैसा कोई मिला ही नहीं 

बोलते  हैं  वक़ील अब निर्मल 
अब तो कानून बोलता ही नहीं 

मैं  आफ़ताब ,वो तीरगी देखता  रहा 
मैं  शुक्र और वो , लानतें भेजता रहा 

सब  खेल में तिरे, मेरे ज़ज़्बात साथ  थे 
 पर तू  तो मिरे, ज़ज़्बात से  खेलता रहा 

आगे नहीं  बढ़ा तू  न कुछ भूलने दिया 
ऐ वक़्त तू  मिरे ज़ख्मों को छेड़ता रहा 

होगा गुरूर उसको  यही  इल्म था मुझे 
अब ये खुला कि वो आदतन झेंपता रहा 

कश्ती में उसके पानी, सुराखों से आ रहा 
लेकिन वो बाल्टी से   उसे फेंकता रहा 

मुमकिन नहीं ये, फ़िर भी मिरा जिस्म बख़्श दे 
चौखट पे मौत के ,माथा मै टेकता रहा