शनिवार, 8 जून 2019

 बेशक सब कमरों में इक खाट पड़ी नहीं थी
 पर ऐसा तो न था  घर में  दरी नहीं थी 
 सारी सुविधाएँ एकमुश्त, धरी नहीं थी 
 हाँ फ़िज़ूलख़र्ची नहीं थी, पर कमी नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ,  कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों आता नहीं दोबारा 

ख़ुशी आसपास थी ,हमसे रूठी नहीं थी 
तब आँखों की नदी हमारी  सूखी नहीं थी 
नीयत और नीति में कोई  दूरी नहीं थी 
दुनिया इंसानियत को तब भूली नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों  आता नहीं दोबारा 

दौलत शोहरत की कोई भी, थाती नहीं थी 
मंदिर में बिन घी की मगर, बाती  नहीं थी 
दिखावे छलावे की भाषा,हमें  भाती नहीं थी 
 बातें  बनानी भी हमको , आती नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों  आता नहीं दोबारा 

 पैसों से अपनी जेब बेशक, पटी  नहीं थी 
 ईमान  गिर जाये  इतनी  जेब फटी नहीं थी 
आँगन से, एहसासों की फुलवारी हटी नहीं थी 
हमारी बुआ बहन  बेटी, हमसे कटी नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों आता नहीं दोबारा 


 हाँ तरक्की की हवा ज़ियादा चली नहीं थी 
 पर भाई की तरक्की भाई को खली नहीं थी 
 लालच की दाल इस समाज में गली नहीं थी
 मुरझाई हुई  कोई भी मन की कली नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों आता नहीं दोबारा 

बेशक पिछड़े थे, और सोच भी खुली नहीं थी 
पर नफरत तो ज़रा भी, हवा  में घुली नहीं थी 
बेतहासा भागने में दुनिया, तुली नहीं थी 
सच पूछो तो वो दुनिया कोई बुरी नहीं थी 

पूछे है दिल की गलियाँ, कोना कोना चौबारा 
गुज़रा हुआ वक़्त, क्यों  आता नहीं दोबारा 










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