बुधवार, 13 सितंबर 2017

जो तू  समझा   रहा है   मुझे रात से
क्या तू ख़ुद मुतासिर है उसी बात से 

क़दमों में अब ये दस्तार गिरती नहीं 
 समझौता कर लिया मैंने हालात  से 

जश्न कैसा कैसी शादी कैसी दुल्हन 
जब के गायब है दूल्हा ही बारात से 

कैसे  खुल के मिले  बंदिशे हैं बहुत  
ख़ुद  से मज़बूर तू, मै मेरी  ज़ात से 

घर नहीं   देखती  गिरने से पहले ये 
कुछ तो सीखा होगा तुमने  बरसात से 

पैरवी   कौन  करता है  सच की यहाँ 
कौन मज़बूर  है  अपने ज़ज़्बात से