शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

जाने इस शहर को अब ये क्या हो गया ;Ghazal

२१२      २१२         २१२        २१२

अब न  जाने बशर को ये क्या हो गया
 बात क्या है कि सबको नशा हो गया

हाथ  अपने   बनाते   रहे आशियाँ  ,
वो तो बातें बना कर खुदा  हो गया।

ना जमीं थी न  जोरू न ज़र बीच में
यार  मुझसे मेरा क्यूँ जुदा  हो गया।

अब मुझे याद अब्बा की आती बहुत ,
जब मेरा  खून मुझसे खफ़ा  हो गया।

कुछ खिलौने नए आज मेले में हैं
जो नया था कभी वो फ़ना हो गया