शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

और रहने की यहाँ हम को इजाज़त अब नहीं ;Ghazal

और रहने की यहाँ हम को इजाज़त अब नहीं ,
जिस तरफ बहती हवा बहने की आदत अब नहीं।

उस समय से जब मुआफी उसको हमने दी सुनो ,
रोज़ माथे की शिकन दिल मे  अदावत अब नहीं।

शर्म से मर जाते थे हम भूल हो जाती थी जब,
खुद की नज़रों मे मियाँ ऐसी शहादत अब नहीं।

होता मन का गज,  कभी पागल तो बंधन  डालते ,
संस्कारों के  यहां,  ऐसे महावत अब नहीं।

माँ सुनाया करती थी हमको कहानी रात में ,
ज़िन्दगी को बूझते किस्से कहावत अब नहीं।

मानते थे राम को सब मानते थे राम की ,
आजकल "निर्मल" यहाँ ऐसी इबादत अब नहीं।

ok


अदावत:शत्रुता

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

ज़ियादा हंस के अब आखिर तू हमको क्या बताएगा;Ghazal

ज़ियादा हंस के अब आखिर तू हमको क्या बताएगा,
अगर दिल मे ख़ुशी है तो तेरा चेहरा बताएगा।

मुझे पूरा भरोसा यार  अपनी परवरिश पर है,
अगर मैं बंद कर लूं आँख दिल रस्ता बताएगा।

समंदर पार करना हो तो रख निस्बत  जहाजों से,
तेरा मल्लाह तो दरिया को भी गहरा बताएगा।

मुखालिफ हम यदी  तेरे मुहब्बत भी अगर  बांटे ,
यकीनन इस को भी तू मुल्क पर खतरा बताएगा।

तेरे दिल की सियासत पर ज़माने भर का पहरा है,
मुझे अफ़सोस होगा जब तू दिल अपना बताएगा।

मेरे घर के हैं दरवाज़े बहुत छोटे तेरे आगे,
तू अन्दर आएगा कितना तेरा झुकना बताएगा।


ok
मुखालिफ :प्रतिद्वंदी



मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

आपसे तब हमें फायदा हो गया ;Ghazal

आपसे तब हमें फायदा हो गया ,
आपके गम का जब आसरा हो गया।

जब मिले राह मे  गम मुझे आपके,
गम से मेरे मेरा फासला हो गया।

ढूँढने मे तुझे वक़्त ज़ाया हुआ,
इस बहाने मगर फैसला हो गया।

जब किसी घर मे लायी पिता ने कभी
दूसरी माँ  पिता तीसरा हो गया।