जो तू समझा रहा है मुझे रात से
क्या तू ख़ुद मुतासिर है उसी बात से
क़दमों में अब ये दस्तार गिरती नहीं
समझौता कर लिया मैंने हालात से
जश्न कैसा कैसी शादी कैसी दुल्हन
जब के गायब है दूल्हा ही बारात से
कैसे खुल के मिले बंदिशे हैं बहुत
ख़ुद से मज़बूर तू, मै मेरी ज़ात से
घर नहीं देखती गिरने से पहले ये
कुछ तो सीखा होगा तुमने बरसात से
पैरवी कौन करता है सच की यहाँ
कौन मज़बूर है अपने ज़ज़्बात से