बस इसलिए पहुंचा फलक तक मै खाक से,
मिलता हूँ जिसको लगता गले वो तपाक से।
क्यूँ तय नहीं है कुछ भी यहाँ कायनात में ,
क्या बन गयी है खुदाई मियां इत्तेफ़ाक़ से।
मुर्दा निज़ाम है अब ,बेहरकत आवाम है,
जिंदा है सब कि आ जा रही सांस नाक से।
भरते हैं पेट अपना वतन नोच नोच के,
निर्मल सभी को मतलब है अपनी खुराक से।
मिलता हूँ जिसको लगता गले वो तपाक से।
क्यूँ तय नहीं है कुछ भी यहाँ कायनात में ,
क्या बन गयी है खुदाई मियां इत्तेफ़ाक़ से।
मुर्दा निज़ाम है अब ,बेहरकत आवाम है,
जिंदा है सब कि आ जा रही सांस नाक से।
भरते हैं पेट अपना वतन नोच नोच के,
निर्मल सभी को मतलब है अपनी खुराक से।
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