शनिवार, 29 सितंबर 2012

चली आई है तेरी याद हम पर हक जताने फिर;Ghazal

चली आई है तेरी याद हम पर हक जताने फिर,
खुदाया चल पड़ी मेरी अना भी घर बचाने  फिर।

मुसलसल काफिले दिन रात के उम्र  खा गए सारी ,
अजल के सामने है ज़िन्दगी अब मात खाने फिर। .

यही  फ़रियाद अपनी आखिरी अब उस खुदा से है,
पलट कर भेज दे माँ को मेरी मुझको सुलाने फिर।

गए थक जब सभी मोहरे गयीं थक  जब सभी चालें ,
मुखालिफ ने भि  बदला रंग मुझको आजमाने  फिर .

 चलो माना तुम्हारे दौर मे दिन रात पैसा है ,
मगर लौटा दो महकी रात सुलझे दिन पुराने फिर।

सफर में रुक गया तो देखना थक जायेगा जल्द ही,
बताना फ़र्ज़ था अपना कि  आगे आप जाने फिर .

अना :आत्मसम्मान ,
मुखालिफ:प्रतिद्वंदी
अजल :मौत












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