सोमवार, 26 जनवरी 2015

उसने शायद आज तक बाज़ी कभी ना  हारी हो,
फिर भी उसको चाहिए वो  वक़्त का आभारी हो.

बस यही करता गुज़ारिश मैं ख़ुदा  से रोज़ ही,
हो ज़रा सी ज़िन्दगी पर वो सदी पर भारी हो। 

धार लफ्जों पर बोहत है है कलम पर नोक भी,
चल सियासत रोक मुझको तेरी  जो तय्यारी  हो। 

छोड़ कर उसको खुशी  चल दे तो खुश होना नहीं,
क्या पता फेहरिश्त में अबकी तुम्हारी बारी हो।

ज़ुल्म उस वहशी  सा तेरा जिसने इज़्ज़त लूटी हो ,
दर्द उस लड़की सा मेरा जिसने इज़्ज़त हारी हो।




रविवार, 25 जनवरी 2015

घर से बाहर निकलो, लोगों से मिलो बाज़ार  में  ,
वो  भी पढ़ना सीखो जो छपता  नहीं अखबार में। 

गाली देकर क्या होगा चौराहे पर या थाने में ,
नेताजी तक पैसा जाता सूबे की सरकार में। 

सौदागर तुम हाट के हो तुम से न बन पायेगी ,
उसके हम सौदाई जो बिकता नहीं बाज़ार  में। 

साफ़ नीयत  से करम कर छोड़ दे फिर सोचना,
नाव साहिल पर लगेगी या फंसेगी धार में।

लोक भी परलोक भी भगवन भी शैतान भी ,
है बुरा अच्छा यहीं  पर कुछ नहीं उस पार में।

लड़के की चाहत का आलम  देखा हमने ऐसे  भी ,
आठ  बेटी एक बेटा भीखू   के परिवार में।

मत पिलाओ दूध पकड़ो सांप फन  से और फिर,
ख़त्म कर दो किस्सा "निर्मल" एक ही तलवार में।