रविवार, 25 जनवरी 2015

घर से बाहर निकलो, लोगों से मिलो बाज़ार  में  ,
वो  भी पढ़ना सीखो जो छपता  नहीं अखबार में। 

गाली देकर क्या होगा चौराहे पर या थाने में ,
नेताजी तक पैसा जाता सूबे की सरकार में। 

सौदागर तुम हाट के हो तुम से न बन पायेगी ,
उसके हम सौदाई जो बिकता नहीं बाज़ार  में। 

साफ़ नीयत  से करम कर छोड़ दे फिर सोचना,
नाव साहिल पर लगेगी या फंसेगी धार में।

लोक भी परलोक भी भगवन भी शैतान भी ,
है बुरा अच्छा यहीं  पर कुछ नहीं उस पार में।

लड़के की चाहत का आलम  देखा हमने ऐसे  भी ,
आठ  बेटी एक बेटा भीखू   के परिवार में।

मत पिलाओ दूध पकड़ो सांप फन  से और फिर,
ख़त्म कर दो किस्सा "निर्मल" एक ही तलवार में। 




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