शुक्रवार, 20 मार्च 2015

किरदार बोहत छोटे मगर रुतबे बड़े हैं ,
हैं लोग मेरे घर में ,समझ से जो परे  हैं। 

दोनों को मिली एक सज़ा वक़्त के हाथों ,
वो जंग  में ,ये हाथ ,हवन  करते जले  हैं। 

टकसाल तुम्हारी ही थी, क्या रोने से हासिल,
खुद आपके निर्देश पे सिक्के ये ढ़ले हैं। 

सब तुमको मिले ,अपने लिए इतना बोहत है ,
माँ  बाप, मेरे आज भी सिरहाने खड़े हैं। 

लेना सभी को आता नहीं आता चुकाना ,
कर्तव्य विमुख भीड़ में हक़दार बड़े हैँ। 

पुस्तक मेरी ,बस्ता मेरा ,सर मेरा बड़ा है ,
बच्चों की तरह आज समझदार अड़े हैं। 

हर दौड़ में आगे मिले क्या दौर है "निर्मल "
अपनी ही निगाहों में  बमुश्किल जो खड़े  हैं। 






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