शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

१२१२२  १२१२२  १२१२२  १२१२
पुरान कुरआन दोनों ग्रंथो से तेरी पहचान थोड़ी है
यही वजह है कि  उसका अल्लाह तेरा भगवान् थोड़ी है

उसे तो मिलता है वोट मज़हब के नाम पर ,काम पर नहीं
वगरना वो आपके हमारे ग़मों से अनजान थोड़ी है

लगाया पत्थर से दिल तो पत्थर में भी खुदा की झलक मिली
मियाँ ये पत्थर से दिल लगाने में कोई नुक्सान थोड़ी है

सुनो ये ग़ज़लें मेरी हमेशा करेंगी बेदार आपको
ये हुक्म अल्लाह का है मुझको ये कोई एहसान थोड़ी है

जेहाद के सब मआनी  शैतान ने सिखाएँ  है आपको
चलो उसे मार दो वो काफिर है कोई इंसान थोड़ी है

ये शे'र चलते हैं अपनी मर्ज़ी से राज दरबार से नहीं
ये तो चमन के महकते गुल हैँ ये गुल ए गुलदान थोड़ी हैं

तुम्हें तो लगता  है सोयें हैं सब तुम्हें कोई देखता नहीं
सितम किये जा हज़ार ,अल्लाह भी निगहबान थोड़ी है

कई बरस से टिकी हुई बदन की जर्जर पनाह में
गलत सुना था, ये ज़िन्दगी कुछ पलों की मेहमान थोड़ी है




रविवार, 15 जुलाई 2018


                              मुक्तक 

मुबारक़ दौलतें तुमको हुक़ूमत भी मुबारक़ हो 
हमारा तो अलग लहजा अलग रोना है दुनिया से 
हमेशा के लिए रहना है बन के नूर आँखों में 
सिकंदर की तरह रुख़सत नहीं होना है दुनिया से 



                                                       ग़ज़ल

वो ही मेरी बेदारी को सलाम करतें हैं
जिनकी ठोकरों का हम एहतेराम करते हैं

दिन का क्या है कट जाता है उनकी यादों में
हम मुशायरों में रातें तमाम करते है 
कलियों की किलकारी भी है फ़ूलों का मुरझाना भी
पाना है सब कुछ यहाँ ,पर छोड़ सब कुछ जाना भी 

उम्र की धारा में बस इक सिम्त बहते जाना है 
मरते मरते जीना भी है ,जीते जी मर जाना भी 

चाहतें ख़ैरात में मिलती नहीं हैं दोस्तों
धूप में थकना है तुमको ,धूप में सुस्ताना भी 

लेना देना साथ चलता बाक़ी कुछ रहता नहीं 
साँस का आना है हर पल ,अगले पल फ़िर जाना भी 

ख्वाइशों की क़ीमतें देते चले जाना यहाँ 
माटी की क़ीमत में इक दिन फ़िर यहॉँ बिक जाना भी 

आपको दुनियाँ में  गर रहना है 'निर्मल' तो सुनो 
झीने रिश्ते सिलना भी है ,रिश्ते कुछ झुठलाना  भी 
                                           
                                                    ग़ज़ल

नींद आँखों में कहो तब  किस तरह पल भर रहे
 वो तुम्हारी याद और हम  जब भी  हमबिस्तर रहे

बस  उसी वादे कि   ख़ातिर जो  तुम्हारे साथ  था
हाथ छोड़ा तुमने ,फ़िर भी उम्र भर हँस कर रहे

जब  हमारे गाँव में अहले सियासत आये थे
कुछ दिनों तक दहशत औ ख़ौफ़ के मंज़र रहे

 लेखनी के लेख को, सच माना तुमने इसलिए
 तुम  कहानी के सभी किरदार में, कमतर रहे

 आपके रौशन  इरादों के मुक़ाबिल कुछ नहीं
  आप जाने कौन सी मजबूरी से दब कर रहे

आपकी, दुश्वारियों से दुश्मनी बढ़ती रहे
आपके क़दमों में 'निर्मल' दुश्मनों का सर रहे 

शनिवार, 30 जून 2018



ज़बान ए अदू से न  तक़रीर  दो फ़िर  
मेरे तिफ़्ले दिल को न जंज़ीर दो फ़िर 

 वक़ारे अदब  ख़त्म होने लगा  है 
 मिरी दुन्या को ग़ालिबो मीर दो फ़िर 




 







  


शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

       ग़ज़ल

इसलिए  दर्द ज़ियादा है, ख़ुमारी कम  है
ज़िन्दगी बीती ज़ियादा है ,गुज़ारी कम है 

 माँग कर लाये थे साँसों का, जो सरमाया हम 
सब हुआ ख़र्च कि अब तो, ये उधारी कम है 

क्या समझ रक्खा है तुमने ओ, जम्हूरे ख़ुद को 
मत समझना किसी सूरत ये ,मदारी कम है 

 जब से क्या थोड़ा नवाज़ा है ख़ुदा  ने उसको 
 तब से भगवान ज़ियादा है ,पुजारी कम है 

ये सियासत है यहाँ सब की, दुकाँदारी है 
सोम संगीत  है सीधा न ,बुख़ारी कम है