रविवार, 15 जुलाई 2018



                                                       ग़ज़ल

वो ही मेरी बेदारी को सलाम करतें हैं
जिनकी ठोकरों का हम एहतेराम करते हैं

दिन का क्या है कट जाता है उनकी यादों में
हम मुशायरों में रातें तमाम करते है 

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