ग़ज़ल
नींद आँखों में कहो तब किस तरह पल भर रहे
वो तुम्हारी याद और हम जब भी हमबिस्तर रहे
बस उसी वादे कि ख़ातिर जो तुम्हारे साथ था
हाथ छोड़ा तुमने ,फ़िर भी उम्र भर हँस कर रहे
जब हमारे गाँव में अहले सियासत आये थे
कुछ दिनों तक दहशत औ ख़ौफ़ के मंज़र रहे
लेखनी के लेख को, सच माना तुमने इसलिए
तुम कहानी के सभी किरदार में, कमतर रहे
आपके रौशन इरादों के मुक़ाबिल कुछ नहीं
आप जाने कौन सी मजबूरी से दब कर रहे
आपकी, दुश्वारियों से दुश्मनी बढ़ती रहे
आपके क़दमों में 'निर्मल' दुश्मनों का सर रहे
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