रविवार, 15 जुलाई 2018

                                           
                                                    ग़ज़ल

नींद आँखों में कहो तब  किस तरह पल भर रहे
 वो तुम्हारी याद और हम  जब भी  हमबिस्तर रहे

बस  उसी वादे कि   ख़ातिर जो  तुम्हारे साथ  था
हाथ छोड़ा तुमने ,फ़िर भी उम्र भर हँस कर रहे

जब  हमारे गाँव में अहले सियासत आये थे
कुछ दिनों तक दहशत औ ख़ौफ़ के मंज़र रहे

 लेखनी के लेख को, सच माना तुमने इसलिए
 तुम  कहानी के सभी किरदार में, कमतर रहे

 आपके रौशन  इरादों के मुक़ाबिल कुछ नहीं
  आप जाने कौन सी मजबूरी से दब कर रहे

आपकी, दुश्वारियों से दुश्मनी बढ़ती रहे
आपके क़दमों में 'निर्मल' दुश्मनों का सर रहे 

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