चहक उठीं हैं कलियाँ देखो वासंती ऋतु आ गयी
मचल उठीं हैं नदियाँ देखो वासंती ऋतु आ गयी
समग्र धरा के पुष्पों का मन अर्पण को तैयार है
पीताम्बरी वसन में जैसे नर्तन को तैयार है
पलाश मन केसरिया देखो ,वासंती ऋतु आ गयी
तेरी मुरलिया सुनने को ये बृज भूमि तैयार है
सुरामृत पीने को क्षिति की अंजुरी भी तैयार है
राधा बोले ओ रसिया देखो वासंती ऋतु आ गयी
मोहक ऋतु के सर पर पगड़ी बंधने को तैयार है
मदन रति का रथ भी देखो चलने को तैयार है
प्रदीप्त मन की गलियां देखो वासंती ऋतु आ गयी
राकेश निर्मल
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