नफ़रत का दरिया बहने दे तू सुख़नवरी कर
सच्ची कलम से संस्कारों की फसल खड़ी कर
दिल की ज़मीन पर एहसासों के गंगा जल से
लोगों के छोटे छोटे दुख लिख कलम बड़ी कर
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