ज़िन्दगी के गुल्लक में एहसासों का सरमाया
बाक़ी कुछ न बचा सका मैं,बस यही मैं रख पाया
एहसासों को बोता हू़ँ तो ग़ज़ल निकलती है
दर्दे दिल की हमदम है और यही है हमसाया
पीछा करना छोड़ो तुम,लोगों के विचारों का
बैसाखी पे चल कर के,किसने क्या यहां पाया
किसकी रोटी किस्मत की आंच पर सिकी साहब
तूने ख़ुद को रोका है,खुद को तूने भरमाया
सरमाया- पूंजी
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