मिट्टी की काया में दिल अब ,पत्थर कैसे हो गए
एक चेहरा था सभी का ,निर्मलता का भाव था
चेहरों पे चेहरे लगा कर ,जोकर कैसे हो गए
संस्कारों की छैनी ने शंकर रूप में ढाला था
कलयुगी धारा में बह कर ,कंकर कैसे हो गए
हम सभी में रक्त है ,नानक राम और बुद्ध का
हम सभी गिरधर के वंशज ,विषधर कैसे हो गए
इस तरह बदलेंगे ख़ुद को,दुश्मन भी कहने लगे
छोटे से तालाब थे ये तो,सागर कैसे हो गए