कुछ न दुनिया में हमारा था कभी
अब मेरे दिल के फ़लक से टूट गया
जो मेरी आँखों का तारा था कभी
बैठ कर खा लेती पुश्तें आपकी
इतनी दौलत को नकारा था कभी
चश्मा दौलत का पहनने के लिए
सच को आँखों से उतारा था कभी
वो सरलता याद आती है जिसे
दुनियावी बाज़ी में हारा था कभी
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