मंगलवार, 27 जून 2023

ज़िंदा हो तुम तब तक जब तक मरे नहीं हो ,
मरे नहीं हो तब तक जब तक डरे नहीं हो 
रिक्त कलश से जीवन में नहीं मोक्ष तब तक 
मातृभूमि के प्रेम से जब तक भरे नहीं हो 
बंध गए हैं तुम भी देखो माया की इस पाश में 
उलझा लिया है जीवन अगर मगर और काश में 
रेंग भी नहीं पा रहे हो ठीक से तुम भूमि पर 
भेजा था उसने तुम्हे उड़ने को आकाश में। 
अब हमारी दस्तरस से दूर हो गए गाँव 
शहर में तो लोग  चलते नित नवेले दांव 
इस तरह भटकन बढ़ी है ज़िन्दगी में आज 
रखते कहीं हैं हम मगर पड़ते कहीं हैं पाँव