रविवार, 27 नवंबर 2011

साँस लेना भी हुआ जंजाल तेरे शहर मे:Ghazal



  साँस लेना भी हुआ जंजाल  तेरे   शहर मे,
  हो गयी है अब हवा बदहाल तेरे शहर मे।

 कद जमीं  छूने  लगा अब आदमी का ग़म नहीं
  ऊंचे भवनों का मगर है जाल तेरे शहर मे .

 चूहे बिल्ली  दौड़ मे वहशी हुए सारे यहाँ ,
  भूख पैसे कि बहुत विकराल तेरे शहर में।

  इस कदर रुपया उगलते देखकर  हमने कहा,
  हो गए लाकर सभी   टकसाल  तेरे  शहर मे।
 
   पूजते हैं देवियों  को मारते हैं बेटियां,
   आदमी की खूब मोटी खाल  तेरे शहर मे।

  देखकर चुपचाप सहते मैं चला आया यहाँ ,
  अब सवालों को बनाकर ढाल तेरे शहर मे।

   कहकहे झूठे लगाते खूब सारे  लोग हैं
    हैं बहुत कम अब मगर  खुशहाल तेरे शहर मे .

   झूठ बन बैठा मदारी हाथ में है डुगडुगी ,
    नाचती है अब सदाकत "हाल" तेरे शहर में।

   आँख का पानी नदारद हो गया अब आँख से,
   हाँ मगर हैं खूब सूरत ताल तेरे शहर मे।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

post your comments