रविवार, 2 मार्च 2014

किताबें इस लिए कोई ;Ghazal

 किताबें  इस लिए,  कोई  नहीं पढता है इस घर में,
 अगर पढ़ लीं, तो फिर चूल्हा नहीं जलता है इस घर में.

हमारे घर तो सूरज भी हमें पूरा नहीं मिलता,
निकलता है वो उस घर से मगर ढलता  है इस घर में।

तो फिर क्यों राह नौ दिन में अढ़ाई कोस तय की  है,
कि जब सब बारहा कहते हैं "सब चलता है" इस घर में।

 फिरंगी तो बोहत पहले हुए रुखसत ,मगर कह दो ,
 है फिर वो कौन जो अक्सर हमें छलता  है इस घर में।

भरें है घी कनस्तर मे लबालब पर कहाँ निर्मल,
किसी भी शाम तुलसी पर दिया जलता है इस घर में।






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