अपनी जुबां से तेरी नज़र फिर गयी मियाँ ,
अहल -ए -नज़र से मेरी जुबां गिर गयी मियाँ।
महफूज़ रह सकी न यूँ इज़्ज़त गरीब की ,
हम तो छुड़ा के लाये मगर फिर गयी मियाँ।
गिरवी रखी थी हमने तुम्हे पालने में जो,
वो ज़िन्दगी तुम्हारे ही खातिर गयी मियाँ।
पूछा जो हमने उनसे कि गैरत कहाँ गयी,
कहने लगे की गरज थी आखिर गयी मियाँ।
महफ़ूज़ रख न पाये ईमाँ को यूँ देर तक ,
गुण्डों के बीच रज़िया मेरी घिर गयी मियाँ।
अहल -ए -नज़र से मेरी जुबां गिर गयी मियाँ।
महफूज़ रह सकी न यूँ इज़्ज़त गरीब की ,
हम तो छुड़ा के लाये मगर फिर गयी मियाँ।
गिरवी रखी थी हमने तुम्हे पालने में जो,
वो ज़िन्दगी तुम्हारे ही खातिर गयी मियाँ।
पूछा जो हमने उनसे कि गैरत कहाँ गयी,
कहने लगे की गरज थी आखिर गयी मियाँ।
महफ़ूज़ रख न पाये ईमाँ को यूँ देर तक ,
गुण्डों के बीच रज़िया मेरी घिर गयी मियाँ।
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