सोमवार, 29 सितंबर 2014

किश्तों में धीरे धीरे सिमटती है ज़िन्दगी,
हर रोज़ एक पन्ना पलटती है ज़िन्दगी।

कुछ वक़्त के लिए हवाले करती मौत के  ,
खुलते ही आँख हमसे लिपटती है ज़िन्दगी।

उड़ने कि तिश्नगी रख खुद देगा  पंख भी ,
पैरों के होते वरना  घिसटती है जिंदगी।

आवाज़ दो बुलाओ न चल दे वो रूठ  कर,
किसके बुलाने पर फ़िर पलटती है जिन्दगी।

पच जाये आसानी से जो उतना खिला  इसे ,
खाया पिया नहीं तो  उलटती  है जिंदगी।






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