किश्तों में धीरे धीरे सिमटती है ज़िन्दगी,
हर रोज़ एक पन्ना पलटती है ज़िन्दगी।
कुछ वक़्त के लिए हवाले करती मौत के ,
खुलते ही आँख हमसे लिपटती है ज़िन्दगी।
उड़ने कि तिश्नगी रख खुद देगा पंख भी ,
पैरों के होते वरना घिसटती है जिंदगी।
आवाज़ दो बुलाओ न चल दे वो रूठ कर,
किसके बुलाने पर फ़िर पलटती है जिन्दगी।
पच जाये आसानी से जो उतना खिला इसे ,
खाया पिया नहीं तो उलटती है जिंदगी।
हर रोज़ एक पन्ना पलटती है ज़िन्दगी।
कुछ वक़्त के लिए हवाले करती मौत के ,
खुलते ही आँख हमसे लिपटती है ज़िन्दगी।
उड़ने कि तिश्नगी रख खुद देगा पंख भी ,
पैरों के होते वरना घिसटती है जिंदगी।
आवाज़ दो बुलाओ न चल दे वो रूठ कर,
किसके बुलाने पर फ़िर पलटती है जिन्दगी।
पच जाये आसानी से जो उतना खिला इसे ,
खाया पिया नहीं तो उलटती है जिंदगी।
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