दौलत हवस नशे से तो अनजान ही रहूँ
ओहदा पहन लूँ फिर भी मैं इंसान ही रहूँ
होठों पे आऊँ रुस्वा करूँ तुझको उम्र भर
बेहतर है मैं तेरे दिल का अरमान ही रहूँ
बचपन में जैसे हँस के लिपटते थे दोस्त से
मौला करे की इतना तो नादान ही रहूँ
ख़ुद को ख़ुदा समझ के सितम कर रहें हैं सब
मैं रब के सच्चे बन्दे की पहचान ही रहूँ
निर्मल सुकून-ए -दिल का सबब हो मेरी ग़ज़ल
सब के लबों पे बन के मैं मुस्कान ही रहूँ
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