शनिवार, 26 अगस्त 2017

 सिर्फ रोया  कभी हँसा  ही नहीं
 मरने से पहले वो जिया ही नहीं

टाल देता था  जो भी चाहे वो 
मौत का वक़्त तो टला ही नहीं 

तेरी खातिर जियेगा क्या कोई 
तू  किसी के लिए मरा ही नहीं 

अपना घर बस बचा हो, बाक़ी फ़िर 
आजकल ख़ून खौलता ही नहीं 

जैसे सब आये तू भी  आ जाता 
सब गिरे थे ,तू तो उठा ही नहीं 

कितने नादाँ हैं ,जो  ये कहते हैं 
अपने जैसा कोई मिला ही नहीं 

बोलते  हैं  वक़ील अब निर्मल 
अब तो कानून बोलता ही नहीं 

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