सीधे सच्चे से बेसाख़्ता अलफ़ाज़ नइ
अब तेरी गुफ़्तगू में वो अंदाज़ नइ
जब तलक तू था अपना ,बहुत लड़ते थे
अब किसी बात पर तुझसे नाराज़ नइ
जब से शाइर सियासी हुआ है मियाँ
उसकी पैनी कलम में भी आवाज़ नइ
उसके हालत अच्छे नहीं हैं ,मगर
आदमी अच्छा है वो, दगाबाज़ नइ
शे'र भी कह दूँ मै,ख़ून भी सूखे नइ
इस तरह की किसी की भी परवाज़ नइ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
post your comments