बुधवार, 27 जनवरी 2021

२१२      २१२          २१२         २१२ 
सीधे सच्चे से बेसाख़्ता अलफ़ाज़ नइ 
अब तेरी  गुफ़्तगू में वो अंदाज़ नइ  

जब तलक  तू था अपना ,बहुत लड़ते थे 
अब किसी बात पर तुझसे नाराज़ नइ 

जब से शाइर सियासी हुआ है   मियाँ 
उसकी पैनी कलम में  भी  आवाज़ नइ 

उसके हालत अच्छे नहीं हैं ,मगर 
 आदमी अच्छा है वो, दगाबाज़ नइ 

शे'र भी कह दूँ  मै,ख़ून  भी सूखे नइ 
इस तरह की  किसी की भी परवाज़ नइ 

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