सोमवार, 14 अक्तूबर 2024

बस इसलिए ही आया, फ़लक़ तक मै ख़ाक से 
मिलते ही लगते मुझसे गले, सब तपाक से 

क्यूँ कुछ भी तय नहीं है यहाँ कायनात में 
क्या बन गयी ख़ुदाई,  मियाँ इत्तिफ़ाक़ से 

तब्दील करता मिटटी, खिलौनों की शक्ल में 
 दिन रात घूमने का हुनर, पूछो चाक से 


 

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