रविवार, 6 अप्रैल 2014

उसने मेरे माज़ी को बेनक़ाब कर डाला ,
दर्द को मेरे  फिर से लाजवाब कर डाला।

क़र्ज़ उन शहीदों के भारी  थे मगर हमने ,
चंद  तारीखें रट के सब हिसाब कर डाला।

हाथ पैर चलते थे अपने काम करते थे,
खैरातों ने यारों हमको  खराब कर डाला।

कल खुदा  परस्ती मे जाहिलों ने बस्ती मे ,
भोले भाले लोगों को फिर "कसाब"  कर डाला।

मौत से करूंगा तेरी शिकायतें "निर्मल "
दर्द ज़िन्दगी तूने बेहिसाब कर डाला।








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