किश्तों में धीरे धीरे सिमटती है ज़िन्दगी,
हर रोज़ एक पन्ना पलटती है ज़िन्दगी।
कुछ वक़्त शब में सौंप के वो मौत को हमें ,
खुलते ही आँख हमसे लिपटती है ज़िन्दगी।
उड़ने की चाह है तो ख़ुदा देगा पंख भी।
पैरों के होते वरना घिसटती है ज़िन्दगी।
आवाज़ दो बुलाओ न चल दे वो रूठ कर ,
किसके बुलाने भर से पलटती है ज़िन्दगी।
पच जाये आसानी से जो इतना खिला इसे ,
खाया पिया नहीं तो उलटती है ज़िन्दगी।
आवाज़ दो बुलाओ न चल दे वो रूठ कर ,
किसके बुलाने भर से पलटती है ज़िन्दगी।
पच जाये आसानी से जो इतना खिला इसे ,
खाया पिया नहीं तो उलटती है ज़िन्दगी।