सोमवार, 27 दिसंबर 2021

अपनी आँखों को कभी तो भिगोइए 
संवेदना को अपने दिल मे पिरोइए 
आंसुओं से भी हो सकता है आचमन 
किसी का दर्द दिखे तो ज़रूर रोइए 

बेटों का तो उनकी शादी तक ही खुशनुमा साथ था 
बेटी का तो ज़िंदगी भर काँधे  पे  हाथ था 
विवश होकर स्वाभिमान का चोला मै धर  गया 
अंतिम वक़्त काटने बेटी के घर गया 
उस पर भी मेरे पुत्र मोह का आलम  तो देखिए 
बेटों के नाम सारी वसीयत मै कर गया 



जब ज़िंदगी खड़ी थी सामने ,तब हँसते नहीं बना 
अब मौत खड़ी  है सामने तो रो रहे हैं  आप  

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

मुक्तक

दूसरों का दर्द न जाने क्यों फांकते हैं
दर्द दिखा नहीं की आंखों से झांकते हैं
आंखों की देहरी ये फौरन लांघते हैं
आंखों के आंसू है शायद दिल मांजते हैं


मुक्तक

बूंद बूंद करके ये रोज रिस रही है
मौत की चाकी में हर दिन ये पिस रही है
काहे का गुरूर है,कैसा ये अभिमान
ज़िन्दगी की पेंसिल जब रोज घिस रही है

मुक्तक पर मुक्तक

तस्वीर पुरानी है पर ये मुक्तक नया है
इतना बतादें की ये मुक्तक कल ही भया है
छोटी सी इल्तिज़ा है,इतना ही मुझे बता दो
क्या भाव हमारा तुम्हारे दिल तक गया है?




मुक्तक

क्यों हंसने के तराने भूलते हो

क्यों अवसाद के झूले झूलते हो

खुशियों के हिंडोले छोड़ के तुम

क्यों रोने के बहाने ढूढते हो


शनिवार, 30 जनवरी 2021

2122                         2122                              2122                 212

ज़ख़्म सारे  एक दिन अपने भरेंगे देखना 
खिलखिला कर लोग सारे, फिर हँसेंगे देखना 

आंसुओं का क्या है हमको सोच कर देखो ज़रा 
आपके रुख़सार पर, ढलके मिलेंगे देखना 

क्या हुआ जो इस जहाँ में मिल न पाए आपसे 
उस जहाँ में आपसे, निश्चित मिलेंगे देखना 

सदियों से भारत वतन ही मांगते आये हैं हम 
फूल बन कर इस चमन में, फिर खिलेंगे देखना 

ख़ाक को तुम भी बदन कहने लगे हो आजकल 
हम बदन को ख़ाक  कहते ही रहेंगे देखना 

हम से हो पाया नहीं तो आपसे होगा नहीं 
दुनिया वाले कह रहे थे, फिर कहेंगे देखना 

ज़िन्दगी बस में नहीं ,बस दिल लगाने के लिए 
 घर बसने की की जुगत  में, चल बसेंगे देखना 

बुधवार, 27 जनवरी 2021

२१२      २१२          २१२         २१२ 
सीधे सच्चे से बेसाख़्ता अलफ़ाज़ नइ 
अब तेरी  गुफ़्तगू में वो अंदाज़ नइ  

जब तलक  तू था अपना ,बहुत लड़ते थे 
अब किसी बात पर तुझसे नाराज़ नइ 

जब से शाइर सियासी हुआ है   मियाँ 
उसकी पैनी कलम में  भी  आवाज़ नइ 

उसके हालत अच्छे नहीं हैं ,मगर 
 आदमी अच्छा है वो, दगाबाज़ नइ 

शे'र भी कह दूँ  मै,ख़ून  भी सूखे नइ 
इस तरह की  किसी की भी परवाज़ नइ 

२१२१२        ११२१२       २१२१२ 

अंधेरों से किसको मलाल है,ये सवाल है 
अब तो रौशनी भी निढाल है,ये सवाल है 

अंजुमन में आपकी किस तरह के अदीब हैं 
इतना गिर गए हो कमाल है,ये सवाल है 

खुद से होके  दूर ही ,तुमसे मिलना हो पाया है 
ये जुदाई है कि विसाल है ,ये सवाल है 

तुम भी पैरोकार हुए ग़लत बातों के मियाँ 
तुम भी कह रहे हो हलाल है ,ये सवाल है 

सीने में सुलगते सवाल थे,सब हवा हुए 
ज़ेहन में न कोई सवाल है ,ये सवाल है 

ऊंचा उठने के लिए नीचे जाने की होड़ है 
ऊँचाई की कैसी मिसाल है ,ये सवाल है