शनिवार, 10 मार्च 2012

ये सच है ज़िन्दगी तुझसे किया, वादा नहीं कुछ भी,Ghazal

ये सच है ज़िन्दगी तुझसे किया, वादा  नहीं कुछ भी,
मगर ये तय है मुझको चाहिए, आधा नहीं कुछ भी।

मेरे घर मे मेरे अब्बा मेरी अम्मी कि बरकत है,
है दौलत प्यार कि इतनी कि शहज़ादा नहीं कुछ भी।

पड़े न वास्ता उस घर से अब "निर्मल" किसी का भी ,
हो दौलत और शोहरत पर हो मर्यादा नहीं कुछ भी।

बेफिक्री मे गुज़ारी ज़िन्दगी बस इसलिए हमने,
उठाये दुःख ,उठाये  सुख कभी लादा  नहीं कुछ भी।

वतन अपना भजन अपना ,सुखन अपना कफ़न अपना,
कहूँ दिल की हमें इनके सिवा भाता नहीं कुछ भी।










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