मुक्तक
हर वक़्त गाडी कानून की हाँकता मिले
भँवरों का मुँह समंदर न फ़िर ताकता मिले
बस इतनी सी गुज़ारिश निज़ाम -ए -वतन से है
अब ज़ख्म आये मुझको ना मुआवज़ा मिले
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