दाँव चलते रहे सभी अपना
मुल्ला पंडित वो पादरी अपना
है मयस्सर ये मुफ़्त में लेकिन
मोल रखती है सादगी अपना
वक़्त पर सब मुकर गए पर माँ
झट से कंगन उतारती अपना
ग़ैर का तो नहीं हो पाया है
खुद का हो जाए आदमी अपना
दुनिया इस पर अमल करे निर्मल
पैगाम-ए -फ़र्ज़ आखिरी अपना
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