सब बह गयी नदी पीछे बस पाट रह गए
हम जोहते जाने किसकी यहाँ बाट रह गए
रंगीन संत सब हो गए राज रंग में
बाकी कहाँ वे चित्रकूट के घाट रह गए
सोने चला गया वो खा पी के पलंग पर
बिनते यहाँ उसूलों की हम खाट रह गए
सारे चमक दमक पाने को शहर चल दिए
अब धूप बेचते गाँव में हाट रह गए
आया चुनाव नेता सभी एक हो गए
हम बँट के बरहमन तो कहीं जाट रह गए
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