शनिवार, 21 जनवरी 2017

सब बह गयी  नदी पीछे  बस पाट  रह गए
हम जोहते जाने किसकी यहाँ बाट रह गए 

 रंगीन   संत  सब  हो  गए  राज  रंग  में 
बाकी कहाँ वे चित्रकूट के घाट रह  गए 

सोने चला  गया  वो खा पी के पलंग  पर 
बिनते  यहाँ उसूलों की हम खाट रह गए 

सारे चमक दमक पाने को शहर चल दिए 
अब  धूप  बेचते  गाँव  में  हाट  रह गए 

 आया  चुनाव  नेता  सभी  एक हो गए   
 हम बँट के बरहमन तो कहीं जाट रह गए 



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