और रहने की यहाँ हम को इजाज़त अब नहीं ,
जिस तरफ बहती हवा बहने की आदत अब नहीं।
उस समय से जब मुआफी उसको हमने दी सुनो ,
रोज़ माथे की शिकन दिल मे अदावत अब नहीं।
शर्म से मर जाते थे हम भूल हो जाती थी जब,
खुद की नज़रों मे मियाँ ऐसी शहादत अब नहीं।
होता मन का गज, कभी पागल तो बंधन डालते ,
संस्कारों के यहां, ऐसे महावत अब नहीं।
माँ सुनाया करती थी हमको कहानी रात में ,
ज़िन्दगी को बूझते किस्से कहावत अब नहीं।
मानते थे राम को सब मानते थे राम की ,
आजकल "निर्मल" यहाँ ऐसी इबादत अब नहीं।
ok
अदावत:शत्रुता
जिस तरफ बहती हवा बहने की आदत अब नहीं।
उस समय से जब मुआफी उसको हमने दी सुनो ,
रोज़ माथे की शिकन दिल मे अदावत अब नहीं।
शर्म से मर जाते थे हम भूल हो जाती थी जब,
खुद की नज़रों मे मियाँ ऐसी शहादत अब नहीं।
होता मन का गज, कभी पागल तो बंधन डालते ,
संस्कारों के यहां, ऐसे महावत अब नहीं।
माँ सुनाया करती थी हमको कहानी रात में ,
ज़िन्दगी को बूझते किस्से कहावत अब नहीं।
मानते थे राम को सब मानते थे राम की ,
आजकल "निर्मल" यहाँ ऐसी इबादत अब नहीं।
ok
अदावत:शत्रुता